सेक्स वर्कर्स की बेटियां आज यूके में दिखा रही हैं अपनी काबिलियत
लाल बत्ती एक्सप्रेस नाम के इस थियेटर में 15 लड़कियां हैं जिनकी मांएं सेक्स वर्कर हैं। इनकी जिंदगी में कैसे बदलाव आया और ये कैसे इस मुकाम तक पहुंचीं। इसी की कहानी बताने आई हैं ये 15 लड़कियां।
सिर्फ 10 साल की उम्र में ही उनके साथ भयावह घटना हुई। उनका रेप हो गया। उनके गहरे रंग के कारण काफी भेदभाव सहना पड़ा। एक सेक्स वर्कर की बेटी होने की वजह से उन्हें क्लासरूम में अकेले बैठना पड़ा।
इनका मानना है कि अगर ये रेड लाइट एरिया में नहीं होतीं तो इन्हें ये सब करने का मौका नहीं मिलता। वाकई में ये बेटियां आज अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं।
मुंबई में कमाठीपुरा जाना माना रेड लाइट एरिया है। जहां सैकड़ों सेक्स वर्कर्स अपनी दयनीय स्थिति में जीवन गुजारती हैं। एक उम्र के बाद इनकी हालत और भी बुरी हो जाती है। इस इलाके में पैदा हुई लड़कियां तमाम मजबूरियों और दुश्वारियों को सहते हुए आज इस मुकाम पर पहुंच गई हैं कि वे एक थियेटर के माध्य़म से ब्रिटेन के एडिनबर्ग फ्रिंज फेस्टिवल में अपनी कहानी साझा कर रही हैं। लाल बत्ती एक्सप्रेस नाम के इस थियेटर में 15 लड़कियां हैं जिनकी मांएं सेक्स वर्कर हैं। इनकी जिंदगी में कैसे बदलाव आया और ये कैसे इस मुकाम तक पहुंचीं। इसी की कहानी बताने आई हैं ये 15 लड़कियां। इनकी उम्र 15 से 22 साल के बीच है। आर्ट फेयर के साथ ही ये लड़कियां ब्रिटेन के कम्यूनिटी सेंटर, थियेटर और मंदिरों में अपनी कला का प्रदर्शन करेंगी।
ग्रुप में 21 साल की संध्या बताती हैं कि सेक्स वर्कर कम्यूनिटी में पैदा होकर पलना-बढ़ना काफी अद्भुत था क्योंकि वहां सभी सेक्स वर्कर उनकी मां समान थीं। यहां पर कोई भेदभाव नहीं था। मुझे लगता है कि मेरे लिये यह धरती की सबसे सुरक्षित जगह थी। लेकिन संध्या के लिए चीजें बदलने लगीं जब वह स्कूल गई। कई सालों तक उन्हें लगातार अपमानजनक बातें सहनी पड़ीं। सिर्फ 10 साल की उम्र में ही उनके साथ भयावह घटना हुई। उनका रेप हो गया। उनके गहरे रंग के कारण काफी भेदभाव सहना पड़ा। एक सेक्स वर्कर की बेटी होने की वजह से उन्हें क्लासरूम में अकेले बैठना पड़ा। अब इन सभी लड़कियों ने मुंबई का रेड लाइट एरिया छोड़ दिया है और अब ये एक ह़ॉस्टल में रहती हैं। क्रांति नाम के एक संगठन द्वारा इनकी देखभाल की जाती है। यह संगठन समाज द्वारा हेय दृष्टि से देखे जाने वाली लड़कियों के लिए काम करता है।
16 साल की रानी बताती हैं कि वह 11 साल की थीं जब उनके पिता का देहांत हो गया। वह अपनी मां के रवैये से काफी व्यथित थीं क्योंकि जिस दिन उनके पिता का देहांत हुआ उसी शाम उनकी मां एक नए आदमी को लेकर आईं और रानी से कहा कि ये उनके नए पिता हैं। अगले दो साल तक उसी नए 'पिता' ने रानी और उनकी मां को जमकर पीटा और उनका उत्पीड़न किया। उनके साथ हर रोज ऐसा होता था। इसके बाद क्रांति संगठन ने उनके देखभाल की जिम्मेदारी तो उठा ली, लेकिन रानी की मां फिर भी यह उत्पीड़न सहती रहीं। क्रांति संगठन की सभी लड़कियों ने एक थियेटर बनाया और उसके माध्यम से अपनी कहानी कहने लगीं।
रानी कहती हैं कि उसके बाद हर रोज मार-पिटाई से घर का माहौल खराब रहने लगा इसलिए मैं घर से भाग आई और मुझे क्रांति के जरिए एक आश्रम में जगह मिली। दिलचस्प बात यह है कि इतना सबकुछ होने के बावजूद रानी अपने सौतेले पिता और अपनी मां के प्रति कोई नफरत नहीं रखतीं, उनका मानना है कि वे भी एक इंसान ही हैं। वह कहती हैं कि किसी को माफ कर देना सबसे बड़ी बात होती है।
मुंबई की इस सेक्स वर्कर्स की बस्ती से एडनबर्ग फ्रिंज पहुंची 15 लड़कियों में शामिल हैं कविता होशमानी। कविता आपबीती सुनाते हुए कहती हैं कि मैं सूफी सिंगर बनना चाहती थी लेकिन कमाठीपुरा में किसी ने मुझे सपॉर्ट नहीं किया। मैं 4 साल की थी जब मेरे पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद जो देखा और जिया उसे ही थिएटर के जरिए दुनिया को बताने का प्रयास किया है। स्टेज पर खुद की कहानी परफॉर्म करने की बात पर कविता का कहना है 'पुलिसवालों द्वारा सेक्स करो या पैसे दो का सौदा से लेकर रेडलाइट एरिया में होने वाले हर तरह के अत्याचार को हमने देखा है। यह हमारे जीवन का हिस्सा है। ऐसे में थिएटर के जरिए दुनिया से अपने दर्द को साझा करने में हमें कोई दिक्कत नहीं है।'
इन लड़कियों को इस स्टेज तक पहुंचाने का का काम किया है कमाठीपुरा रेडलाइट एरिया में काम करने वाले एनजीओ 'क्रांति' ने। ये लड़कियां फ्रिंज सहित ब्रिटेन में 9 प्ले करेंगी। 'लालाबत्ती एक्सप्रेस' ने फ्रिंज जाने से पहले लंदन में अपने शो का प्रीमियर किया, जिसमें उन लड़कियों की कहानी को दिखाया गया जो ट्रैफिकिंग का शिकार हुईं। यूके में ये लड़कियां सेक्स वर्कर्स के यहां ही रुकीं। कविता कहती हैं 'यूके में सेक्स वर्कर्स से मुलाकात अच्छा अनुभव है। कई के मुंह से यह बात सुनकर अच्छा लगा कि वो सेक्स को इंजॉय करती हैं। यहां भी कई लड़कियों को जबरदस्ती इसमें धकेला गया है।' शो से हुए अनुभव के बारे में उनका कहना है कि 'ऑडियंस का हमें भरपूर साथ मिला। किसी ने हमारे दर्द में सहानुभूति दिखाई तो कई दर्शक हमारी कहानी देखते हुए रो दिए।' 'लालबत्ती एक्सप्रेस' के अमेरिकन को-फाउंडर रॉबिन चौरसिया का कहना है कि 'हमारा उद्देश्य केवल रेडलाइट एरिया से जुड़ी लड़कियों की कहानी दिखाना नहीं है बल्कि हम उनके बारे में बनी समाज की स्टीरियो टाइप मानसिकता को भी चुनौती देना चाहते हैं।'
इस ग्रुप की सदस्य अश्विनी जल्द ही न्यू यॉर्क के लिए उड़ान भरने वाली हैं। अश्विनी वहां साइकॉलजी की पढ़ाई करने जा रही हैं। 19 साल की अश्विनी का कहना है कि इस शो ने उनका आत्मविश्वास बढ़ाया है 'मैंने फ्रिंज में कई शो देखे हैं, इनमें कई शो में मैंने ऐसा कुछ देखा जो मुंबई में कभी नहीं देखा था। थिएटर हमारे घावों को भरने में हमारी मदद कर रहा है क्योंकि इसके जरिए हम अपनी भावनाओं को व्यक्त कर पा रहे हैं।' अगले हफ्ते यह ग्रुप ग्लासगो और इल्गेन में परफॉर्म करेगा। इनकी इस यात्रा के लिए फंड क्राउडफंडिंग के जरिए जुटाया गया है।
इन सभी लड़कियों का मानना है कि इस दुनिया में सभी की जिंदगी में संघर्ष है, लेकिन सबके भीतर एक उम्मीद है कि एक न एक दिन सब कुछ सही हो जाएगा। ये कहती हैं कि पृष्ठभूमि की वजह से ये कमजोर नहीं हो सकती हैं। ये अपने अतीत को सकारात्मक नजरिए से देखती हैं। इनका मानना है कि अगर ये रेड लाइट एरिया में नहीं होतीं तो इन्हें ये सब करने का मौका नहीं मिलता। वाकई में ये बेटियां आज अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं।
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